भारत का कोयला आधारित स्टील उत्पादन बढ़ाने का प्लान नेट ज़ीरो लक्ष्य को खतरे में डाल सकता है: रिपोर्ट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के लिए 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य तय किया है, लेकिन ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (GEM) की ताज़ा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कोयला आधारित स्टील उत्पादन क्षमता बढ़ाने की योजनाएं इस लक्ष्य को मुश्किल बना सकती हैं।
भारत में तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और इंफ्रास्ट्रक्चर पर हो रहे भारी निवेश के चलते स्टील की मांग लगातार बढ़ रही है। लेकिन यह वृद्धि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को बढ़ा सकती है। GEM की रिपोर्ट में कहा गया है, "भारत का कोयला आधारित स्टील निर्माण में निवेश और नए ब्लास्ट फर्नेस के निर्माण से 2070 तक नेट ज़ीरो लक्ष्य खतरे में पड़ सकता है। इसके अलावा, देश को $187 बिलियन की स्ट्रैंडेड एसेट्स का जोखिम हो सकता है।"
रिपोर्ट के अनुसार, अतिरिक्त ब्लास्ट फर्नेस क्षमता से भारत के स्टील क्षेत्र से 680 मिलियन मीट्रिक टन अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड-समतुल्य उत्सर्जन हो सकता है।
गौरतलब है कि भारत, जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा क्रूड स्टील उत्पादक है, ने 2030 तक अपनी उत्पादन क्षमता 180 मिलियन मीट्रिक टन से बढ़ाकर 300 मिलियन मीट्रिक टन करने का लक्ष्य रखा है।
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यह भी पढ़ें : कॉनकोर के सीएमडी श्री संजय स्वरूप ने ब्रेथवेट एंड कंपनी लिमिटेड का दौरा, साझेदारी को मजबूत करने पर दिया जोरजीईएम ने कहा कि भारत में विकास के तहत दुनिया की सबसे बड़ी इस्पात निर्माण क्षमता पाइपलाइन है - ऐसी परियोजनाएँ जिनकी घोषणा की जा चुकी है या जो निर्माण चरण में हैं - कुल मिलाकर लगभग 258 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष।
इसने कहा कि दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था में इस्पात उत्पादक प्रति टन कच्चे इस्पात के उत्पादन में 2.55 मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न करते हैं, जो वैश्विक औसत 1.85 टन से 38 प्रतिशत अधिक है। जीईएम ने कहा कि वर्तमान में इस्पात क्षेत्र में उपयोग की जाने वाली 85 प्रतिशत ऊर्जा कोयले से आती है। कोयला आधारित ब्लास्ट फर्नेस से इस्पात निर्माण विभिन्न विकास चरणों के तहत इस्पात क्षमता का 69 प्रतिशत है, जबकि इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस से 13 प्रतिशत है।
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